एलईडी लाइट के दौर में कुम्हार जीवत रखे हैं दीयों की परंपरा
बिसौली। बदायूं। दीपोत्सव आते ही लोग तैयारियों में जुट गए हैं। इस त्योहार पर मिट्टी के दीयों का अपना अलग आकर्षण होता है। दिवाली को देखते हुए बड़ी संख्या में हाथ के चाक से ही मिट्टी के दीये बनाने का काम कुम्हारों ने शुरू कर दिया है। इस वर्ष कुम्हार इलेक्ट्रिक चाक के बजाय हाथ वाले चाक से दीपों से रोशनी जगमग कराएंगे।
इसको लेकर मिट्टी के आकर्षक दीये, चौकड़ा व गणेश लक्ष्मी की मूर्ति बनाने में दिन-रात जुटे दिवाली में अब कुछ दिन ही शेष हैं। बाजारों में ख़रीदारी के लिए भीड़ उमड़ रही हैं। इस पर्व पर दीपों से अपने घर आंगन को सजाने की तैयारी में लोगो ने घरों को सजाना शुरू कर दिया है। वहीं कुम्हारों के चाक भी घूमने लगे हैं।
कस्वा के कुम्हारान मोहल्ले के रहने वाले सत्यपाल प्रजापति पूरे परिवार के साथ अपने घर के सामने सड़क पर रखे चाक पर दीये और पूजा में काम आने वाले मिट्टी का चौकड़ा बना रहे हैं। वह बताते हैं कि दीयों को बनाने के काफी ऑर्डर मिले हैं। बदलते ट्रेंड के साथ लोग डिजाइन दार दीये पसंद कर रहे हैं।
कुम्हार राजू, श्याम, पप्पू आदि का कहना है कि इस बार करीब एक लाख दीये बनाने का लक्ष्य है। इससे उनकी आमदनी होगी, लेकिन मिट्टी न मिलने के कारण उन्हें परेशानी होती है। ग्रामीण क्षेत्रों के तालाबों से मिट्टी मंगानी पड़ती है, जो महंगी होती है। इसमें ज्यादा खर्च पड़ रहा है,
लेकिन पुस्तैनी काम को आगे बढ़ाने के लिए वह इस काम को कर रहे हैं। पप्पू ने बताया कि इलेक्ट्रिक चाक खरीदने के उसके पास रुपये नहीं, इसलिए अपने देसी चाक से ही दीये बना रहे हैं।मिट्टी महंगी,
फिर भी पुश्तैनी कार्य को दे रहे बढ़ावा
कुम्हार राजेन्द्र प्रजापति ने बताया कि महंगाई के दौर में अब मिट्टी की भी कीमत आसमान पर है। पहले मिट्टी काफी सस्ती मिलती थी, जो अब 150 से 200