बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी लक्ष्मण रेखा

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बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी लक्ष्मण रेखा

Wednesday, November 13, 2024 | November 13, 2024 Last Updated 2024-11-13T13:09:37Z
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बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी लक्ष्मण रेखा

 न्यायपालिका का काम, कार्य पालिका नहीं कर सकती
बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि बुलडोजर से की जा रही कार्रवाई असंवैधानिक है। अदालत ने कहा है कि किसी व्यक्ति का घर केवल इसलिए नहीं गिराया जा सकता है कि उस पर कोई आरोप लगा है। अदालत ने कहा कि आरोपों पर फैसला सुनाना न्यायपालिका का काम है कार्यपालिका का नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर से लोगों के घर गिराए जाने को असंवैधानिक बताया है।

अदालत ने कहा कि यदि कार्यपालिका किसी व्यक्ति का मकान केवल इस आधार पर गिरा देती है कि वह अभियुक्त है, तो यह कानून के शासन का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा की यहां तक कि गंभीर अपराधों के आरोपी और दोषी के खिलाफ भी बुलडोजर की कार्रवाई बिना नियम का पालन किए नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कानून का शासन,नागरिकों के अधिकार और प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत आवश्यक शर्त है। अगर किसी संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया जाता है कि व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है तो यह पूरी तरह से असंवैधानिक है।

किसी एक की गलती की सजा पूरे परिवार को नहीं दे सकते आरोपी एक तो पूरे परिवार को सजा क्यों? गलत तरीके से घर तोड़ने पर मुआवजा मिले। सत्ता का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जा सकता बुलडोजर ऐक्शन पक्षपातपूर्ण नहीं हो सकता बुलडोजर की मनमानी पर अधिकारियों को नहीं बख्शेंगे घर तोड़ने की हालत में संबंधित पक्ष को समय मिले किसी अपराध की सजा देने का अदालत का काम है बिना फैसले के किसी को भी दोषी न माना जाए।

अपने फैसले में जस्टिस गवई ने कहा कि किसी का घर उसकी उम्मीद होती है। हर किसी का सपना होता है कि उसका आश्रय कभी न छिने। हर आदमी की उम्मीद होती है कि उसके पास आश्रय हो। हमारे सामने सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका किसी ऐसे व्यक्ति का आश्रय छीन सकती है जिस पर अपराध का आरोप है। अदालत ने कहा कि किसी आरोपी का घर सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता क्योंकि उस पर किसी अपराध का आरोप है।उन्होंने कहा कि आरोपों पर सच्चाई का फैसला सिर्फ न्यायपालिका ही करेगी।

अदालत ने कहा कि कानून का शासन लोकतांत्रिक शासन का मूल आधार है। यह मुद्दा आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता से संबंधित है। यह अनिवार्य करता है कि कानूनी प्रक्रिया को अभियुक्त के अपराध के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वो राज्य में कानून व्यस्था बनाए रखे।

अदालत ने कहा कि सभी पक्षों सुनने के बाद ही हम आदेश जारी कर रहे है। अदालत ने कहा कि हमने संविधान के अदालत ने कहा कि सत्ता के मनमाने प्रयोग की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

यदि ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है, तो इस आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए समय दिया जाना चाहिए। सड़क, नदी तट आदि पर अवैध संरचनाओं को प्रभावित न करने के निर्देश। बिना कारण बताओ नोटिस के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं की जाएगी। मालिक को पंजीकृत डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा और नोटिस को संरचना के बाहर चिपकाया भी जाएगा। नोटिस तामील होने के बाद अपना पक्ष रखने के लिए

संरचना के मालिक को 15 दिन का समय दिया जाएगा। तामील होने के बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी। कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे।नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति, निजी सुनवाई की तिथि और किसके समक्ष सुनवाई तय की गई है, निर्दिष्ट डिजिटल पोर्टल उपलब्ध कराया जाएगा, जहां नोटिस और उसमें पारित आदेश का विवरण उपलब्ध कराया जाएगा।

प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई सुनेगा और मिनटों को रिकॉर्ड किया जाएगा। उसके बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा। इसमें यह उत्तर दिया जाना चाहिए कि क्या अनधिकृत संरचना समझौता योग्य है और यदि केवल एक भाग समझौता योग्य नहीं पाया जाता है और यह पता लगाना है कि विध्वंस का चरम कदम ही एकमात्र जवाब क्यों है। आदेश डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा। आदेश के 15 दिनों के भीतर मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का अवसर दिया जाएगा और केवल तभी जब अपीलीय निकाय ने आदेश पर रोक नहीं लगाई है,

तो विध्वंस के चरण होंगे। विध्वंस की कार्रवाई की वीडियोग्राफी की जाएगी। उक्त विध्वंस रिपोर्ट नगर आयुक्त को भेजी जानी चाहिए। सभी निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। इन निर्देशों का पालन न करने पर अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी। अधिकारियों को मुआवजे के साथ ध्वस्त संपत्ति को अपनी लागत पर वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएंगा।
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