त्याग और बलिदान के पर्व ईद-उल-अजहा को कालांतर में मुसलमानो ने बली का पर्व बना दिया
रामपुर। ईद उल अजहा के मुबारक मौके पर मुस्लिम महासंघ श्री फरहत अली खान ने अपने परिवार के साथ किया वृक्षारोपण। उन्होंने कहा कि 17वीं शताब्दी मे वहाबी आंदोलन के कारण प्रथाओ के विश्लेषण की नींव पड़ी जिसने 21वीं सदी के मुसलमान को तार्किक, जागरूक और जिम्मेदार बना दिया।
परमाणु हथियारो की होड़ और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या ने मानव जाति के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है, ऐसे नाज़ुक समय मे मुसलमान बढ़-चढ़कर वृक्षारोपण करते हुए अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे है।
एक तरफ रेगिस्तान को अरब देश हरा-भरा बनाने का भरसक प्रयत्न कर रहे है तो दूसरी तरफ हमारे शत्रु देश पाकिस्तान ने वृक्षारोपण करके इतना कार्बन क्रेडिट अर्जित कर लिया है कि उसका लगभग डेढ़ सौ अरब डॉलर का क़र्ज़ ही निबट जाए।
भारत मे राष्ट्रवादी मुसलमान वृक्षारोपण के मामले मे दुनिया के दूसरे मुसलमानो से पीछे नही है,
उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के फरहत अली खान के नेतृत्व मे मुस्लिम महासंघ वर्षो से वृक्षारोपण करके जनता को पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए जागरूक कर रही है।
आज ईद-उल-अधा के अवसर पर मुस्लिम महासंघ ने मुहल्ला बाजोड़ी टोला स्थित अजीमुद्दीन खान पार्क मे वृक्षारोपण अभियान चलाया।
इस अवसर पर मुस्लिम बुद्धिजीवी ने बताया कि सही बुखारी की हदीस संख्या 2320 के अनुसार :-"कोई भी मुसलमान जो एक पौधा लगाया या खेत मे बीच बोया, (फिर उसमे से परिंदा या इंसान या जानवर जो भी खाते है) वह उसकी तरफ से सदका है"।
सही बुखारी की किताब 39 की संख्या 518 के अनुसार अबु हुरेरा ने बताया कि अंसार ने उनसे कहा:- "पैगंबर साहब ने खजूर के पेड़ो को मेहमानो और हमारे बीच बांटने का आदेश दिया" ताकि उनकी सेवा करके हम फसल को जनहित मे बांट सके।
बुखारी के अनुसार पैगंबर साहब ने कहा कि "पृथ्वी सुंदर और हरी-भरी है और हमे (मनुष्य को) इसका संरक्षक बनाया गया है अर्थात पृथ्वी की देखभाल करना हमारा दायित्व है।
मस्नदे-अहमद की एक हदीस मे वृक्षारोपण की फजीलत बताते हुये पैगंबर साहब ने तो यहां तक कहा कि "अगर कयामत कायम होने वाली हो और किसी के पास बोने के लिये खजूर की कोई कोंपल हो तो उसे चाहिये कि वह उसे बो दे, उसके इस अमल के बदले उसे अज्र और सबाब मिलेगा।"
कुरान मे सूराह रुम की आयत-41 मे अल्लाह ने पर्यावरण को लेकर चेतावनी दी है कि "(जिनके कारण) जल और थल मे बिगाड़ (पैदा) हो गया है कदाचित वह बाज़ आ जाए"।
द्वितीय खलीफा ने हज़रत उमर ने हरे-भरे और फलदार पेड़ काटने पर प्रतिबंध लगाकर 1400 वर्ष पहले पर्यावरण संरक्षण का कानून बनाते हुए विश्व को एक नई राह दिखाई थी जिसको आज 21वीं शताब्दी के युवा मुसलमान अपना जीवन मिशन बनाकर पृथ्वी की रक्षा कर सकते है।