चंदौसी को फिर से साँसें मिलीं... और विनय मिश्रा ने फिर साबित कर दिया कि अगर इरादे नेक हों तो कोई भी दीवार बड़ी नहीं होती।
संपादक राहुल शर्मा बदायूं
रात के सन्नाटे में जब अधिकांश नगरवासी गहरी नींद में सोए थे, तब चंदौसी में एक नई सुबह का आरम्भ हो चुका था। उपजिलाधिकारी पद की कमान संभालते ही विनय मिश्रा जी ने बिना एक पल गंवाए नगर को अतिक्रमण रूपी बीमारी से मुक्त कराने के लिए बुलडोज़र की कमान थामी। सीओ अनुज चौधरी और नगरपालिका परिषद चंदौसी के साथ मिलकर उन्होंने एक बार फिर उस कार्य को शुरू किया, जो लंबे समय से राजनीतिक दबावों, झूठे विरोध और न्यायालयी भ्रमजाल में फंसा हुआ था।
शहर की साँसे अटकी हुई थीं। मुख्य मार्ग दम तोड़ते नज़र आ रहे थे। जाम, धूल, शोर और असुविधा – यह सब अब आमजन की दिनचर्या बन चुका था। लेकिन आज, एक बार फिर शहर ने राहत की साँस ली है। कब्रिस्तान के समीप सरकारी भूमि पर किए गए अतिक्रमण – जिनमें अवैध कब्रें और पक्के निर्माण तक खड़े कर दिए गए थे – को एक-एक कर ध्वस्त किया गया।
यह ध्यान देने योग्य है कि यह अतिक्रमण कोई मामूली 1 या 2 मीटर का नहीं था, पूरा 10 मीटर चौड़ी सड़क पूरी तरह निगल ली गई थी। और सबसे दुखद बात यह रही कि लोगों को यह स्पष्ट जानकारी होने के बावजूद कि वह ज़मीन सार्वजनिक मार्ग है, वे वहाँ अपने प्रियजनों को दफनाते रहे। यह न सिर्फ कानून का उल्लंघन था, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के रास्ते पर बोझ डालने जैसा था।
इससे भी अधिक शर्मनाक तथ्य यह है कि स्थानीय नेताओं ने वोट बैंक की राजनीति में अपने होंठ सिल लिए। कोई न बोला, न टोका। सड़क पर मौतें होती रहीं, एम्बुलेंस फँसती रही, लेकिन राजनीति मौन रही।
आज जनता को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है –
आखिर हम कब तक मंदिर, मस्जिद, धर्मस्थान, श्मशान, कब्रिस्तान या व्यक्तिगत स्वार्थ के अतिक्रमण के नाम पर अपने शहर की सड़कों का गला घोंटते रहेंगे?
क्या होगा जब किसी अपने की एम्बुलेंस इसी अतिक्रमण की वजह से जाम में फँस जाए और हम उसे खो दें?
विनय मिश्रा को ‘चंदौसी का खैरनार’ कहना अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि उनके कार्यों का यथोचित सम्मान है। जब वह पूर्व में कार्यवाहक ईओ के रूप में नियुक्त हुए थे, तब भी उन्होंने रेलवे फाटक 35 बी से लेकर शहर के भीतरी भागों तक अतिक्रमण हटाने का वह अभियान चलाया था, जिसे जानबूझकर वर्षों से रोका जा रहा था।
विशेष बात यह रही कि इस बार मिश्रा जी ने केवल प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग नहीं किया, बल्कि सामाजिक संवेदनशीलता और सांप्रदायिक सौहार्द का परिचय देते हुए दक्षिणेश्वर काली मंदिर के अतिक्रमण को स्वयं मंदिर समिति के सहयोग से हटवाया, जिससे ये संदेश गया कि अभियान केवल एक धर्म विशेष के विरुद्ध नहीं, बल्कि जनहित में है।
परंतु इस नेक कार्य के बीच सबसे बड़ा विलेन बना – कब्रिस्तान कमेटी।
जहाँ नगर के बहुसंख्यक समाज ने स्वेच्छा से अतिक्रमण हटाकर सहयोग दिया, वहीं कब्रिस्तान कमेटी ने ना केवल विनय मिश्रा की भलमनसाहत का फायदा उठाया, बल्कि पीठ पीछे छुरा घोंपने जैसा कृत्य किया। पहले उन्होंने विनम्रता से समय माँगा, मिश्रा जी ने नोटिस के साथ समय भी दिया। लेकिन जैसे ही मिश्रा जी महाकुंभ की ड्यूटी पर गए, उन्होंने रातों-रात खंभे उखाड़ डाले और न्यायालय की शरण में पहुँच गए — जहाँ से उन्हें कोई राहत नहीं मिली।
ये केवल अतिक्रमण नहीं था, यह विश्वासघात था।
न्यायालय से कोई राहत न मिलने पर, मिश्रा जी ने फिर एक बार बिना हिचक बुलडोजर उठाया, और नगर की मुख्य सड़कों को पुनर्जीवन दिया। यह वही सड़कें हैं, जिनसे छात्र, व्यापारी, आपातकालीन सेवाएं और आम जनता हर दिन जूझती थीं।
आज चंदौसी नगर फिर से खुलकर साँस ले रहा है। और इसके लिए विनय मिश्रा जी को साधुवाद 🙏🙏
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