संसार के पथ प्रदर्शक बने गोस्वामी तुलसीदास आचार्य

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संसार के पथ प्रदर्शक बने गोस्वामी तुलसीदास आचार्य

Thursday, July 31, 2025 | July 31, 2025 Last Updated 2025-07-31T12:18:52Z
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संसार के पथ प्रदर्शक बने गोस्वामी तुलसीदास आचार्य

जन्म से ही समस्याओं का किया सामना

महाकवि के रूप में बनी प्रतिष्ठा 

77 वर्ष की आयु में लिखी रामचरितमानस

2 वर्ष 7 माह 26 दिन में पूरी हुई रामचरितमानस 

राम विवाह के दिन संसार को मिली रामचरितमानस 

बरेली /सरस्वती शिशु मंदिर नैनीताल मार्ग बरेली में महाकवि तुलसीदास जयंती के अवसर पर शिशु भारती प्रमुख आचार्य राजेश कुमार शर्मा ने गोस्वामी जी के चित्र पर माल्यार्पण किया  शर्मा ने तुलसीदास जी के जीवन के विषय में बताते हुए कहा
इस धरती पर कतिपय ऐसी महान विभूतियां आई हैं , जिनका अवतरण एवं निर्वाण एक ही तिथि को हुआ है। उन विभूतियों में
भक्ति-कुल-शिरोमणि तुलसीदास जी अन्यतम हैं। उनका जन्म तथा देहावसान - दोनों ही श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसीदास जी का अद्भुत जीवन पर बताते हुए आचार्य राजेश शर्मा ने कहा कि जन्म के समय तुलसीदास रोए नहीं, बल्कि उनके मुख से "

 राम " शब्द उच्चरित हुआ। उनके जन्म की चौथे दिन ही माता ' हुलसी ' का देहावसान हो गया। पिता आत्माराम दुबे ने उसकी जिम्मेदारी चुनिया को दे दी जब तुलसीदास जी साढ़े पांच वर्ष के थे , तब उनका पालन-पोषण करनेवाली ' चुनिया ' का भी देहान्त हो गया। एक तरह से तुलसीदास अनाथ और अशुभ हो गए। 

तभी  नरहर्यानंद जी की दृष्टि तुलसीदास पर पड़ी*। उन्होंने ही इन्हें " राम मंत्र " की दीक्षा दी। तुलसीदास जी ने काशी में पन्द्रह वर्ष तक रहकर वेद-वेदाङ्ग , रामायण , महाभारत आदि का गंभीर अध्ययन किया।
अपनी अर्धांगिनी रत्नावली के प्रति तुलसीदास जी में अत्यधिक आसक्ति थी। इसे देखकर रत्नावली ने कहा - " मेरी इस हाड़-मांस के शरीर में जितनी तुम्हारी आसक्ति है , 

उससे आधी भी यदि भगवान में होती , तो तुम्हारा बेड़ा पार हो गया होता ! " यह बात तुलसीदास को चुभी। तुरंत वह घर छोड़कर निकल पड़े। भक्त तुलसीदास जी ने 77 (सतहत्तर) वर्ष की आयु में संवत 1631 में रामनवमी के दिन अयोध्या में रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की थी। तुलसीदास जी स्वयं रामचरितमानस में लिखते हैं -

संवत सोलह सै एकतीसा। 
करउं कथा हरि पद धरि सीसा।।
महाकाव्य रामचरितमानस के सातों काण्ड की समाप्ति दो वर्ष सात महीने छब्बीस दिन में संवत् 1633 के मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में राम-विवाह के दिन हुई थी।
महाकाव्य श्री रामचरितमानस की रचना के कारण भक्त कवि तुलसीदास जी की गणना विश्व के प्रसिद्ध महाकवियों में होती है। 

महाकाव्य श्री रामचरितमानस को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46 वां स्थान प्राप्त हुआ है। इनकी अन्य काव्य रचनाएं - विनय पत्रिका , कवितावली , दोहावली , हनुमान चालीसा भी लोकप्रिय हैं। इस अवसर पर रामकिशोर श्रीवास्तव रामेश्वर सिंह धीरज जी, संजीव जी, ऋषभ मिश्रा, श्रीमती अलका नवीन, वंशिका मिश्रा सहित सभी आचार्य परिवार एवं भैया बहन उपस्थित रहे।
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