सपा के समक्ष भगवा चक्रव्यूह भेद्ने की चुनौती अलग अलग जातियों के मतों को साधने का लक्ष्य।
अयोध्या। मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में सपा व भाजपा ने विजय हासिल करने के लिए पूरी शक्ति लगा दी है। इस सुरक्षित सीट पर दोनों ही दलों ने पासी बिरादरी के उम्मीदवारों को उतारा है। अब अलग-अलग जातियों के मतों को साधने के लिए विशिष्ट रणनीति तैयार की है।
प्रतिनिधि चेहरे मैदान में उतारे गए हैं। विस क्षेत्र में पासी बिरादरी के बाद सर्वाधिक 50 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं। इस वर्ग को लामबंद करने के लिए भाजपा ने स्थानीय नेताओं पर भरोसा जताया और उन्हें ही मोर्चे पर तैनात कर दिया, जबकि इस भगवा रणनीति से पार पाने के लिए सपा भी हाथ पांव मार रही है।
उसके पास पूर्व मंत्री तेज नारायण पांडेय पवन तुरुप के इक्के रूप में हैं। पवन ने भाजपा के चक्रव्यूह को भेदने की कसरत प्रारंभ कर दी है। गांव-गांव में चौपाल लगा रहे हैं।
सपा ने सांसद अवधेश प्रसाद के पुत्र अजीत प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है, जबकि भाजपा ने चंद्रभानु पासवान पर दांव खेला है। पार्टी ने ब्राह्मण मतों को साधने के लिए महापौर महंत गिरीशपति त्रिपाठी, पूर्व महापौर ऋषिकेश उपाध्याय, जिलाध्यक्ष कृष्णकुमार पांडेय खुन्नू,
पूर्व जिलाध्यक्ष अवधेश पांडेय बादल, पूर्व महानगर अध्यक्ष अभिषेक मिश्र को मोर्चे पर लगा दिया है। सभी सक्रिय हैं।
प्रदेश के नेताओं के साथ कदम से कदम मिला कर पार्टी की रणनीति को धार दे रहे हैं। उधर कैबिनेट मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, एमएलसी अवनीश पटेल, मंत्री गिरीशचंद्र यादव सहित दर्जनभर पिछड़े वर्ग के कद्दावर नेता पहले से तैनात हैं।
जिलाध्यक्ष संजीव सिंह का कहना है कि हम सबका साथ, सबका विकास व सबका विश्वास के मंत्र को जीने वाले हैं। इसलिए कुल 80 प्रतिशत वोट हमारा है, बाकी में भी बंटवारा है। पार्टी रणनीति के अनुरूप अभियान को गति दे रही है। बड़े मतों के अंतर से जीतेंगे।
कटेहरी विस चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले गोसाईंगंज से विधायक रहे भाजपा नेता इंद्रप्रताप तिवारी खब्बू की मिल्कीपुर में इंट्री की प्रतीक्षा हो रही है। भाजपा प्रत्याशी की नामांकन सभा के मंच पर लगे बैनर में खब्बू तिवारी का चित्र न दिखाई देने पर उनके समर्थकों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। खूब शोर मचा।
पार्टी के भीतर बैचैनी की चर्चा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस डैमेज को कैसे कंट्रोल करती है। मिल्कीपुर क्षेत्र में खब्बू की अच्छी राजनीतिक पकड़ मानी जाती है।