बदायूं में 28 जून को मनाई जाएगी भामाशाह जयंती

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बदायूं में 28 जून को मनाई जाएगी भामाशाह जयंती

Tuesday, June 24, 2025 | June 24, 2025 Last Updated 2025-06-25T05:35:03Z
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बदायूं में 28 जून को मनाई जाएगी भामाशाह जयंती
समस्त बंधुओं को सूचित किया जाता है की गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी महान देशभक्त दानवीर शिरोमणि श्री भामाशाह जी की जयंती मनाई जा रही है 

#मुख्य_कार्यक्रम_स्थल_भामाशाह_चौक_बदायूं 28 जून दिन शनिवार सांय 6:00 बजे  
#निवेदक श्री भामाशाह सेवा समिति (रजि) उत्तर प्रदेश
जय भामाशाह  अपनी संपूर्ण संपत्ति दान कर मातृभूमि की रक्षा करने वाले 

राष्ट्र गौरव,महान योद्धा,#दानवीर_भामाशाह जी को नमन
वह धन्य देश की माटी है, जिसमें भामाशाह सा लाल पला, उस दानवीर की यश गाथा को, मेट सका क्या काल भला।। 
 महाराणा प्रताप को दी गई उनकी हरसम्भव सहायता ने मेवाड़ के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नई दिशा दी।भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए।

दान की चर्चा होते ही भामाशाह का नाम स्वयं ही मुँह पर आ जाता है। देश रक्षा के लिए महाराणा प्रताप के चरणों में अपनी सब जमा पूँजी अर्पित करने वाले दानवीर भामाशाह का जन्म (राजस्थान) हुआ था। उनके पिता श्री भारमल्ल तथा माता श्रीमती कर्पूरदेवी थीं। श्री भारमल्ल राणा साँगा के समय रणथम्भौर के किलेदार थे। अपने पिता की तरह भामाशाह भी राणा परिवार के लिए समर्पित थे।

एक समय ऐसा आया जब अकबर से लड़ते हुए राणा प्रताप को अपनी प्राणप्रिय मातृभूमि का त्याग करना पड़ा। वे अपने परिवार सहित जंगलों में रह रहे थे। महलों में रहने और सोने चाँदी के बरतनों में स्वादिष्ट भोजन करने वाले महाराणा के परिवार को अपार कष्ट उठाने पड़ रहे थे। राणा को बस एक ही चिन्ता थी कि किस प्रकार फिर से सेना जुटाएँ,जिससे अपने देश को मुगल आक्रमणकारियों से चंगुल से मुक्त करा सके।
इस समय राणा के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या धन की थी।

 उनके साथ जो विश्वस्त सैनिक थे, उन्हें भी काफी समय से वेतन नहीं मिला था। कुछ लोगों ने राणा को आत्मसमर्पण करने की सलाह दी; पर राणा जैसे देशभक्त एवं स्वाभिमानी को यह स्वीकार नहीं था। भामाशाह को जब राणा प्रताप के इन कष्टों का पता लगा, तो उनका मन भर आया। उनके पास स्वयं का तथा पुरखों का कमाया हुआ अपार धन था। उन्होंने यह सब राणा के चरणों में अर्पित कर दिया। राणा ने आँखों में आँसू भरकर भामाशाह को गले से लगा लिया।

राणा की पत्नी महारानी अजवान्दे ने भामाशाह को पत्र लिखकर इस सहयोग के लिए कृतज्ञता व्यक्त की। इस पर भामाशाह रानी जी के सम्मुख उपस्थित हो गये और नम्रता से कहा कि मैंने तो अपना कर्त्तव्य निभाया है। यह सब धन मैंने देश से ही कमाया है। यदि यह देश की रक्षा में लग जाये, तो यह मेरा और मेरे परिवार का अहोभाग्य ही होगा। 
उधर जब अकबर को यह घटना पता लगी, तो वह भड़क गया।

 वह सोच रहा था कि सेना के अभाव में राणा प्रताप उसके सामने झुक जायेंगे; पर इस धन से राणा को नयी शक्ति मिल गयी। अकबर ने क्रोधित होकर भामाशाह को पकड़ लाने को कहा। अकबर को उसके कई साथियों ने समझाया कि एक व्यापारी पर हमला करना उसे शोभा नहीं देता। इस पर उसने भामाशाह को कहलवाया कि वह उसके दरबार में मनचाहा पद ले ले और राणा प्रताप को छोड़ दे; पर दानवीर भामाशाह ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अकबर से युद्ध की तैयारी भी कर ली। यह समाचार मिलने पर अकबर ने अपना विचार बदल दिया।

भामाशाह से प्राप्त धन के सहयोग से राणा प्रताप ने नयी सेना बनाकर अपने क्षेत्र को मुक्त करा लिया। भामाशाह जीवन भर महाराणा प्रताप की सेवा में लगे रहे। 
ईश्वर से प्रार्थना है कि सभी वन्धुओको भामाशाह जैसी सम्पन्नता, दयालुता व दानशीलता प्रदान करें।


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