संघ की शताब्दी यात्रा: राष्ट्र निर्माण की अनवरत धारा

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संघ की शताब्दी यात्रा: राष्ट्र निर्माण की अनवरत धारा

Wednesday, October 1, 2025 | October 01, 2025 Last Updated 2025-10-01T12:48:24Z
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संघ की शताब्दी यात्रा: राष्ट्र निर्माण की अनवरत धारा
वर्ष 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आज एक शताब्दी का पड़ाव पार कर लिया है। यह यात्रा केवल वर्षों की गिनती नहीं, 

बल्कि भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय जीवन की गहन धारा का प्रतीक है। संघ ने अपने प्रारंभ से ही भारत की आत्मा को समझने और उसे संगठित करने का प्रयास किया। संघ का मूल मंत्र रहा है “संगठित समाज ही राष्ट्र की शक्ति का आधार है।” इसी विचार से संघ ने न किसी राजनीतिक दल के विरोध में कार्य किया और न सत्ता प्राप्ति को अपना लक्ष्य बनाया।

 उसका लक्ष्य रहा है—भारतीय समाज को आत्मगौरव, अनुशासन, सेवा और समर्पण के आधार पर संगठित कर, राष्ट्र को सशक्त बनाना। संघ की शाखाएँ, जो बाहरी दृष्टि से मात्र खेलकूद और अनुशासन के अभ्यास प्रतीत होती हैं, वस्तुतः राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की प्रयोगशालाएँ हैं। 

प्रातःकालीन प्रार्थना, अनुशासन और सामूहिकता का यह अभ्यास स्वयंसेवकों के जीवन में मातृभूमि के प्रति निष्ठा और कर्तव्यबोध को गहराई से स्थापित करता है। यही कारण है कि समय-समय पर आई प्राकृतिक आपदाओं, सामाजिक संकटों और राष्ट्रीय चुनौतियों में संघ के स्वयंसेवक बिना किसी प्रचार की अपेक्षा के सेवा में अग्रणी दिखाई देते हैं।

संघ के 100 वर्षों की इस यात्रा ने यह सिद्ध किया है कि बिना किसी प्रत्यक्ष सत्ता-लालसा के भी राष्ट्र के जीवन को प्रभावित किया जा सकता है। संघ ने समाज के सभी वर्गों—दलित, वंचित, आदिवासी, महिलाएँ और युवा

—सभी को अपने कार्य में जोड़ा और उन्हें समाज व राष्ट्रहित की धारा में प्रवाहित किया। आज जब भारत ‘विकसित राष्ट्र’ बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तब संघ की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। क्योंकि केवल आर्थिक प्रगति से कोई राष्ट्र महान नहीं बनता, उसके लिए सांस्कृतिक आत्मविश्वास, सामाजिक एकता और नैतिक मूल्य आवश्यक होते हैं। 

संघ इन तीनों आधारों पर निरंतर कार्य कर रहा है। संघ की शताब्दी केवल संगठन की उपलब्धि नहीं है, यह पूरे भारतीय समाज के लिए आत्मचिंतन और आत्मगौरव का अवसर है। यह हमें स्मरण कराती है कि यदि हम संगठित होकर अपने मूल्यों और संस्कृति के साथ आगे बढ़ें, तो भारत निश्चित ही विश्व को नेतृत्व देने में सक्षम होगा।
संघ की शताब्दी यात्रा राष्ट्र निर्माण की वह अनवरत धारा है, जो आने वाले शताब्दियों तक भारत के भविष्य को आलोकित करती रहेगी।

    
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